Shorts Lumikha
Pinoproseso ang video na ito, mangyaring bumalik sa loob ng ilang minuto
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नरेश भाईसाहब को चाहने वालों की आंखों में आज आसूं हैं। भ्रष्टाचार जीत गया - संघर्ष हार गया 🥲🥲 एक इंसान कितना ही संघर्ष कर सकता है 2 साल से एक भी दिन पुरी नींद नहीं सोया लेकिन हाडौती की जनता फिर भी इस कोहीनूर को समझ नहीं पाई। भाईसाहब आप लडाका हो, मर्द हो, लाखों लोगों की उम्मीद कि किरण हो!
हम सब मरते दम तक आपके साथ है। ...
Naresh Meena
एक छोटे, शांत और साधारण से दिखने वाले किराए के कमरे में रहने आया रवि, पहले ही दिन अजीब चीज़ महसूस करता है—बिस्तर के पास वाली दीवार से आती बेहद धीमी साँसों की आवाज़। शुरुआत में वह इसे अपने वहम या दूसरी तरफ़ के खाली स्टोररूम का असर समझता है, लेकिन रात गहराते ही कमरे का सन्नाटा किसी डरावने सच को जन्म देता है।
हर रात दीवार मानो ज़िंदा होने लगती है—
धीमी, गर्म साँसें…
अंदर से आती खुरचने की आवाज़…
और फिर… दीवार की सतह से उभरी हुई दो उंगलियाँ, जो बाहर आने की कोशिश कर रही हैं।
जैसे किसी को दीवारों के बीच ज़िंदा दफन कर दिया गया हो…
और वह अब भी मदद के लिए चीख रहा हो।
रवि को समझ आता है कि उसके नए कमरे की दीवार में कोई सिर्फ़ फँसा नहीं है…
बल्कि जाग चुका है।
यह कहानी एक क्लौस्ट्रोफोबिक, मनोवैज्ञानिक और अलौकिक हॉरर का अनुभव कराती है, जहाँ कमरे की चारदीवारी ही डर का असली चेहरा बन जाती है।



